Sunday, April 19, 2009

एक और आईआईटी या एक और मंदिर....

....ताज्जुब की बात है कि आज भी राजनीतिक पार्टियां मंदिर मस्जिद को अपना मुद्दा बनाकर १५वां लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं... किसी पार्टी के मेनिफेस्टो में मंदिर बनाने का पिछले १७ सालों का वादा है, तो किसी पार्टी में कंधमाल, बाटला हाउस, संसद और ८४ जैसे दंगो के गुनाहगारों को क्लीन चिट देना और न देना धर्म से जुड़ी राजनीति पर निर्भर करता है....आज भी मंच पर भाषण देने वाले नेता, अभिनेता अपने फूहड़ भाषणों से चर्चा में आने की कोशिश करते हैं ...
राजनीति में आने वाले युवा नेता वरुण गांधी को भी जनता में जगह बनाने के लिए जय श्री राम का सहारा लेना पड़ता है........सबसे अहम बात ये है कि किसी भी पार्टी का युवा नेता खुलकर देश की समस्याओं को जानने समझने की कोशिश नहीं कर रहा है॥कांग्रेस में तो राजनीति विरासत में मिली पूंजी है जिसके बलबूते पर पार्टी युवा नेताओं की सरकार होने का दावा करती है .....
देश में कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और कितने बच्चे आज भी अपना नाम लिखना नहीं जानते एसी में बैठे ये नेता सोचना और समझना जरूरी भी नहीं समझते....समझ में नहीं आता कि ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटीज से पढ़कर आने वाले 'युवराज' भारत में आकर शिक्षा को अपना चुनावी मुद्दा बनाने की जगह जय श्री राम को अपनाते हैं..... विदेशों में पढ़ने तो राम मोहन रॉय, विवेकानंद , महात्मा गांधी और नेहरू जैसे लोग भी गए थे लेकिन इन्होंने अपनी शिक्षा को देश की अच्छाई के लिए इस्तेमाल किया.. ऐसे नेताओं का क्या करेंगे जो मोटी मोटी डिग्रीयां लेकर देश के विकास में मदद देने की बजाय देश को बर्बाद करने पर तुले हैं...
खुद उनके घर के लोग कई धर्मों को मानने वाले हैं लेकिन भोली जनता की भावनाओं को भुनाने में मजा आता है... जनता नासमझ है और जनता का नासमझ होना इनकी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए जरूरी है इसीलिए शायद ये विकास, शिक्षा, जागरुकता की जगह मंदिर, मस्जिद की बातें करते हैं .. ऐसे घिनौने वादे करते हैं लेकिन सिर्फ चुनावी सफर तक... उसके बाद कौन सी जनता कौन सा मंदिर....... कुछ और युवा नेता मेनेजमेंट गुरुओं से स्क्रिप्ट लिखाकर, स्पीच की पूरी तैयारी करके मैदान में उतरते हैं..... अगर कोई नेता वंशवाद की राजनीति से बाहर निकलकर वाकई में जमीनी स्तर पर काम करना चाहता है तो उसका स्वागत है........
लेकिन इन नेताओं के साथ साथ हमें भी समझना होगा कि हमें क्या चाहिए ? अपने आप से पूछें तो जवाब मिल जाएगा कि अपने बच्चों को हम क्या देना चाहते हैं एक अच्छा कॉलेज या एक अच्छा मंदिर ? शिक्षित बनने की संस्था या अंध आस्था का घर ?