Friday, May 22, 2009

अंकल स्क्रूच का खजाना

चुनाव आते ही सांसदों के बहिखाते तैयार हुए.. ये जानकर कोई आश्चॆय नहीं हुआ कि १५वीं लोकसभा में ३०० सांसद ऐसे हैं जिनकी सम्पत्ति करोड़ों में है... पर एक झटका जरूर लगा कि जहां एक तरफ इस देश में करोड़ों लोगों को एक वक्त का खाना बमुश्किल नसीब होता है वहीं दूसरी ओर जनता के सेवक करोड़ों में खेल रहे हैं......चुनाव चाहे राज्य सभा के हों या लोकसभा के , सम्पत्ति के लेखे जोखे का खेल हम दशकों से देखते आ रहे हैं.. इनकी सम्पत्तियां चुनाव दर चुनाव बढ़ती जाती हैं और सारे बहिखातों को चुनाव के बाद ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाता है.. क्यों उन बहिखातों को सार्वजनिक नहीं किया जाता? मेरे ख्याल से तो ये है कि चुनाव से पहले हर प्रत्याशी द्वारा प्रगति का ग्राफ तैयार किया जाना चाहिए जिसमें क्षेत्र के लिए मिले अनुदान के खर्च का तथ्यों सहित ब्योरा हो..तथ्यों के साक्ष्य के मद्देनजर वोटिंग होनी चाहिए.. वोट देना हमारा हक है पर क्या अंगुली पर स्याही मात्र लगाने से ये दायित्व पूरा हो जाता है?

Thursday, May 7, 2009

जय हो मंगलमय हो

कोई कहता है जय हो तो कोई कहता है भय हो॥ कोई कहता है आम आदमी के बढ़ते कदम तो कोई कहता है इन्डिया शाइनिंग..... शाइन तो है लेकिन देश की जनता (जिसे जनता कहा जा सकता है) की नहीं राजनेताओं की जो कि पाँच साल में अपना भरपूर विकास कर लेते हैं॥ वाकई में इस राजनीति की जय हो जहाँ के राजनेताओं को विकास का मतलब तक नहीं पता लेकिन विकास कराने का दम भरते हैं...
प्रियंका गांधी अमेठी में अपने दौरे के दौरान मंच और माइक छोड़कर जनता के बीच चली गईं.. और वहां जाकर उन्हें गांव वालों को उन्हीं के गांव में होने वाले विकास को समझाना पड़ रहा था.. ये थी एक और भूल जनता को मूर्ख समझने की... उस भीड़ में से एक वृद्ध महिला की आवाज आई कि हमारे गांव में बिजली तो अभी भी नहीं है तो 'इंदिरा गांधी की छवि रखने वाली' प्रियंका ने समझाया कि हमारा काम था खम्बे गड़वाना सो हमने कर लिया अब बिजली तो आप को राज्य सरकार नहीं दे रही॥ यानि इस बार राज्य में भी राहुल भईया के चुनाव चिन्ह को जिताओ तो खम्बे के साथ साथ बिजली भी मिलेगी..... मेरे एक वरिष्ट साथी ने बताया कि बिजली(बिजली से मतलब घर में जगमगाने वाली ट्यूबलाइट से है), पानी और सड़क शहरी मुद्दे हैं इसका गांव से कोई लेना देना नहीं है... मुझे इस बात पर अचम्भा हुआ क्योंकि मेरे मुताबिक इनकी सबसे ज्यादा जरूरत गांव वालों को ही थी.. लेकिन वे इस मामले में साफ थे उनका कहना था कि गांव वालों की पहली जरूरत एक अस्पताल, एक स्कूल और डीजल हो सकती है जबकि रफ्तार से मॉल तक कार दौड़ाने के लिए एक अच्छी सड़क, मॉल को जगमगाने के लिए बिजली की जरूरत शहरी जनता को ही है इसीलिए सरकारी खजाने का बड़ा भाग शहरों को ही ये सुविधा बार बार उपलब्ध कराने में जाता है... बार बार इसलिए क्योंकि यहां एक तथ्य समने रखना चाहती हूँ... मध्यप्रदेश के आर्थिक शहर कहे जाने वाले इन्दौर में पहले से ही डम्बर की पक्की सड़कें मौजूद थीं लेकिन शहर को अत्याधुनिक बनाने के लिए उन सड़कों को तोड़कर वहां सीमेंट और रबड़ की सड़कें बनाई गईं... नतीजा शहर का जल स्तर (वॉटर टेबल) धीरे धीरे कम होता गया और अब वहां भी पानी के लिए हाहाकार मच गया है... इस उदाहरण के बाद मेरी इस बात को भी बल मिलता है कि ये नेता साइंटिफिक विकास के बारे में जानते ही नहीं हैं॥ वे नहीं जानते की भारत के जलवायू के मुताबिक यहां कौन सी बात पहले और ज्यादा जरूरी है... सिर्फ पश्चिम का अन्धानुकरण... यहां एक बात और जोड़ना चाहूँगी यहां रेल्वे स्टेशन के पास अक्सर यूकेलिपटल के पेड़ लगे दिखाई देते हैं॥ ये पेड़ यूँ ही नहीं उगे हैं बल्कि सरकार द्वारा बकायदा जगह जगह लगवाए गए हैं.. इस पेड़ के तमाम फायदों के बावजूद सबसे बड़ा नुकसान ये है कि धरती से जल स्तर को कम करने में सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं क्योंकि इसकी जड़ें पानी को ज्यादा मात्रा में सोखती हैं... जब इस बात की जानकारी नहीं थी तब तो ठीक था लेकिन जानकारी मिलने के बाद भी ये पेड़ उतनी ही संख्या में दिखाई दे जाएंगे... जिस देश की ७० प्रतिशत जनता आज भी २०-३० रुपये प्रति दिन यानि ६०० रुपये माह कमाती हो और जिस देश के एमपी पर ५ साल के लिए एक करोड़ साठ लाख रुपये खर्च किए जाते हों उस देश का विकास हो रहा है ? और क्या उस देश का विकास हो सकता है? TOTAL expense for a MP [having no qualification] per year : Rs।32, 00,000/- [i।e। 2।66 lakh/month] TOTAL expense for 5 years : Rs। 1, 60, 00,000/- For 534 MPs, the expense for 5 years : Rs. 8,54,40,00,000/ - (Nearly 855 crores) AND THE PRIME MINISTER IS ASKING THE HIGHLY QUALIFIED, OUT PERFORMING CEOs TO CUT DOWN THEIR SALARIES.... . This is how all our tax money is been swallowed and price hike on our regular commodities. ........जिस देश में एमपी एमएलए ५ साल में याद आने वाले चुनावी दौरों में प्लेन और एसी कारों से दौरों में लाखों रुपये पानी की तरह बहा रहे हों क्या उस देश का विकास हो सकता है?
सोचने की जरूरत है अगर ५ साल काम किया होता तो उसे साबित करने की क्या जरूरत होती॥ "सत्य को प्रमाण की क्या आवश्यकता "

Saturday, May 2, 2009

पुरानी दुकान की नामी चाट

एकाएक मंत्री जी
कोई बात सोचकर मुस्कुराये,
कुछ नए से भावः उनके चेहरे पे आए
उन्होंने अपने पीए से पूछा-
क्यों भाई, ये डेमोक्रेसी क्या होती है
पीए कुछ झिझका, साकुचाया शर्माया
-बोलो बोलो डेमोक्रेसी क्या होती है
- सर जहां जनता के लिए जनता के द्वारा जनता की ऐसी तेसी होती है वहीं डेमोक्रेसी होती है

अशोक चक्रधर की कविता से