Monday, February 2, 2009

एक और जूता?

अजब गजब खेल है ये जूतों का... गुस्सा निकालने का नया तरीका... जैदी जी का जूता फेल हुआ तो क्या हुआ एक और शौयॆवीर ने ये साहस कर दिखाया... अबकी बार निशाने पर थे चीन के प्रधानमंत्री वेन जिआबो.. हालांकि निशाना इस बार भी चूका लेकिन ये जूता भी कमाल कर गया... और तो और भारतीय मीडिया ने तो बार बार ये खबरें दिखाकर सोने पर सुहागा कहावत को चरिताथॆ किया है... कैसे? वो ऐसे कि इसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव पर कितना गहरा पड़ सकता है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.... नए जमाने के इन क्रांतिकारियों को सरकार पर गुस्सा दिखाने के लिए ना ही तो कोई बंदूक चाहिए न गोला बारूद, चाहिए तो 'बस एक जूता'.... अब सोचिए कि हमारे नेता तो बिना सोचे समझे कुछ भी कहने के लिए 'फेमस' हैं, अपनी सभा में, मीडिया को बाइट देते वक्त बोलने से पहले सोचना जरूरी तो समझते नहीं हैं.. अगर हमारी जागरुक जनता ने जूतों की बारिश करनी शुरू कर दी तो कुकुरमुत्ते से उगने वाले नेताओं पर जगह जगह जूते बरसते रहेंगे... और हां, भारत में भी निशाना चूके इसकी कोई गारन्टी नहीं है... खैर सम्भलते गिरते नेताओं को तो हमारी यही राय है कि अपनी सभाओं में किसी चीज पर रोक लगाएं या न लगाएं, लेकिन जूते पर रोक जरूर लगा देनी चाहिए... सभी जगह कड़ी चैकिंग हो कि गलती से भी कोई श्रोता जूते पहन कर नेताजी का भाषण सुनने न आए!

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