चुनाव आते ही सांसदों के बहिखाते तैयार हुए.. ये जानकर कोई आश्चॆय नहीं हुआ कि १५वीं लोकसभा में ३०० सांसद ऐसे हैं जिनकी सम्पत्ति करोड़ों में है... पर एक झटका जरूर लगा कि जहां एक तरफ इस देश में करोड़ों लोगों को एक वक्त का खाना बमुश्किल नसीब होता है वहीं दूसरी ओर जनता के सेवक करोड़ों में खेल रहे हैं......चुनाव चाहे राज्य सभा के हों या लोकसभा के , सम्पत्ति के लेखे जोखे का खेल हम दशकों से देखते आ रहे हैं.. इनकी सम्पत्तियां चुनाव दर चुनाव बढ़ती जाती हैं और सारे बहिखातों को चुनाव के बाद ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाता है.. क्यों उन बहिखातों को सार्वजनिक नहीं किया जाता? मेरे ख्याल से तो ये है कि चुनाव से पहले हर प्रत्याशी द्वारा प्रगति का ग्राफ तैयार किया जाना चाहिए जिसमें क्षेत्र के लिए मिले अनुदान के खर्च का तथ्यों सहित ब्योरा हो..तथ्यों के साक्ष्य के मद्देनजर वोटिंग होनी चाहिए.. वोट देना हमारा हक है पर क्या अंगुली पर स्याही मात्र लगाने से ये दायित्व पूरा हो जाता है?
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