Wednesday, January 21, 2009

मैं शिकायत क्यूँ न करूँ ?

अक्सर लोगों को कहते देखा है की जो मिला है उसमें खुश रहो शिकायत मत करो .... अक्सर मेरे पास बड़े भावुक मैसेज़ आते हैं कि तुम्हारे पास जो है तुम उसकी शिकायत करते हो। दुनिया में झाँककर देखो उनके पास तो कुछ भी नही है,फ़िर भी तुम शिकायत करते हो ... शिकायत न करो ..... मैं कन्फ्यूज हूँ कि अगर मैं कुछ मांगती हूँ तो क्या ग़लत करती हूँ ... अगर मैं अपना हक पाना चाहती हूँ तो इसमे ग़लत क्या है ... मैं पढ़ लिखने के बाद सक्षम होने के बाद मुंह और आंखों पर पट्टी क्यूँ बांधूं ...... सच तो ये है कि मैं अपने आसपास फ़ैली परेशानी को देखने के बाद ही तिलमिलाती हूँ और ....'महीनों बाद अपने ब्लॉग पर लिखने बैठती हूँ '... अगर हम सब को जीने का हक है तो मैं चुप क्यूँ रहूँ... दुनिया मैं फैली इस गरीबी को देखने के बाद मैंने प्रण किया है की मैं चुप नही बैठुंगी... आज मैं अपने लिए लडूंगी और कल...... लेकिन कैसे ? फिलहाल मैं यही सोचने में व्यस्त हूँ मेरी नज़र में कुछ पसंद करने से ज्यादा जरुरी है कुछ पसंद न करना .... सारी बात मानने से ज्यादा जरुरी है जिद करना ... शिकायत करना ... मेरी नज़र मैं शिकायत जरुरी है..........आप क्या कहते हैं....

1 comment:

Unknown said...

आपने सही कहा कि प्रश्न पूछना जरूरी है...सब सामने वाले ने साजिशों का जाल फैला रखा हो....और हमारे लिए करने के लिए जगह कम हो तो उसकी साजिशों के खिलाफ उंगली उठाना ही बेहतर है.....इससे माकूल माहौल आने पर साजिशों का विरोध करने वालों को एकजुट करने में आसानी होगी....यार यह कहां तक जायज है कि सामने वाला साजिशों पर साजिशें गढ़ता रहे और हम बिना रीढ़ से उसके शिकार होते रहें......जिनके पास रीढ़ है......विरोध वही कर सकते हैं.........प्रश्न भी वही पूछ सकते हैं.