Friday, January 23, 2009

कमल कीचड़ में ही खिलता है

कहते हैं कमल कीचड़ में ही खिलता है ... इस बात के कुछ उदाहरण हमारे देश में देखने को मिले भी हैं .... जैसे याद कीजिये स्ट्रीट लाइट में पढ़कर डॉक्टर बनने वाले बच्चों की ... या फिर गरीब बुनकर के उन दो बेटों की कहानी जो दिन भर पिता के काम में हाथ बटाते हैं और रात में लालटेन में पढ़कर आई आई टी जैसे एक्साम को पास कर लेते हैं जो अच्छे अच्छे लोगों के पसीने छुड़ा देता है ... कभी मध्य प्रदेश से सुनने में आता है की रिक्शा चलाने वाले की बेटी ने हाई स्कूल की परीक्षा में टॉप किया है.. तो आई ऐ एस में निकलने वाले कई गरीब बच्चों के उदाहरण हमारे सामने आते रहते हैं.... जिंदगी की सच्चाई को मानना ग़लत नही है ,,, सच तो ये है की जिंदगी की सच्चाई से लड़ते लड़ते ये लोग अपने सपनो को पूरा करने के लिए महनत करते हैं॥ अगर दुनिया को अपनी सच्चाई बताने में हमें शर्म आती है तो उस शर्म से कुछ सीखना भी बहुत जरुरी है ... हो सकता है की ये बात सही हो की फ़िल्म किसी विदेशी ने बनाई है इसलिए ऑस्कर की दौड़ में शामिल हुई हो लेकिन टेड़ी उंगली से ही सही हमने शुरुआत कर दी है ॥ और एक बार आगे बढ़ने के बाद हम भारतीय पीछे नहीं, देखते ... एक पान मसाले के ऐड में आता है की ' हम भारतियों को अपनी जगह अच्छी तरह पता है लेकिन दुनिया जरा देर से समझती है ,,, अमेरिका में एक काले व्यक्ति को भी राष्ट्रपति बनने के लिए एक लंबा सफर तय करना पड़ा है, उसी देश में जहाँ कालों को वोट देने तक का अधिकार नहीं था ...
खैर फ़िल्म पर कमेन्ट करना जल्दबाजी होगा पर फ़िल्म देखने के लिए उत्सुकता जगती है फ़िल्म एक अच्छा प्रयास हो सकती है
हम कीचड हैं तो क्या हुआ कमल सी खूबसूरती भी हम ही दे सकते हैं ... बात बस नजरों की है

1 comment:

शेष said...

दूसरों के गिरेबान की खबर देना आम तौर पर हमारी बहादुरी में शामिल हो चुका है। अपनी ओर देखने की हिम्मत ही आखिरकार हमें अपनी नजर में ऊंचा उठा सकती है।
अच्छा लिखा है, और लिखने से ज्यादा अच्छा सोचने की कोशिश की है प्रिया आपने...
...जारी रखना चाहिए।

अगर बुरा नहीं लगे, तो एक सलाह- लिखने के बाद पोस्ट करने से पहले संपादन के लिहाज से एक बार सावधानी से पढ़ लेना चाहिए।